कुछ ऐसे मेरे भाई ने जीवन में ली पिता की जगह

भारतीय परिवारों में ऐसा माना जाता है कि घर का बड़ा बेटा पिता के समान होता है लेकिन बहुत कम ही ऐसे बेटे होते हैं जो पिता की जिम्मेदारियों को कम उम्र से ही निभाना शुरू कर देते हैं। 

 
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भारतीय परिवारों में ऐसा माना जाता है कि घर का बड़ा बेटा पिता के समान होता है लेकिन बहुत कम ही ऐसे बेटे होते हैं जो पिता की जिम्मेदारियों को कम उम्र से ही निभाना शुरू कर देते हैं। मुश्किल तब होती है जब घर का बेटा एक भाई भी हो। तब उसकी जिम्मेदारियों में इजाफा कई गुना ज्यादा हो जाता है। मैं दीक्षा कौशिक आज आपको इस लेख में बताउंगी कि मां-पापा के होते हुए भी मेरा भाई मेरे जीवन में कैसे एक पिता की भूमिका निभाता है और उसका मेरा रिश्ता कैसा है। 

हर भाई बहन के रिश्ते की ही तरह हमारा रिश्ता भी है: लड़ना-झगड़ना, गुस्सा करना, नाराज़ होना, एक दूसरे की चीजों को हथियाना, मेरा पापा से झूठ बोलकर उसे मार खिलवाना और उसका मां से झूठ बोलकर मुझे डांट पड़वाना। मगर इन सबके बीच मैंने कई बार अपने भाई को एक पिता की तरह मुझे संभालते हुए देखा।

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मेरा भाई गौरव कौशिक, बदमाश भी है और प्यारा भी। एक मौका नहीं छोड़ता मुझसे लड़ने का लेकिन अगर मैं किसी बात से परेशान हो जाऊं तो मुझे उदास भी नहीं देख सकता है। मुझे आज भी वो किस्सा याद है। मैंने पापा से अपने लिए स्कूटी मांगी थी लेकिन पापा ने मुझे यह कहकर मना कर दिया कि अभी लेना ठीक नहीं है। 

मैं मायूस होकर अपने कमरे में चली गई। मेरा भाई आया और मुझे चिढ़ाने लगा कि पापा ने तुझसे प्यार नहीं करते, अगर करते तो फौरान स्कूटी दिला देते। मुझे मेरे भाई पर बहुत गुस्सा आया। मैं उसपर बहुत चिल्लाई और उसे अपने रूम से बाहर निकला दिया। शाम को मेरा भाई आया और मुझे चिल्ला-चिल्ला कर बाहर बुलाने लगा।

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मुझे उस वक्त लगा कि शायद झगड़ा करेगा तो मैं भी गुस्से में बाहर गई लेकिन जब मैं बाहर पहुंची तो देखकर हैरान रह गई कि वो मेरे लिए नई स्कूटी लाया था। पापा मैंने और मां ने उससे जब पूछा कि इतने पैसे कहां से आए तब उसने बताया कि उस अपने लिए नई बाइक लेनी थी जिसके लिए वह पैसा जमा कर रहा था और उसी पैसों से वो स्कूटी ले आया। 

उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मेरा भाई मुझे और मेरी जरूरतों को कितने अच्छे से समझता है और उसके लिए मैं कितनी इम्पोर्टेन्ट हूं। इस किस्से ने मेरे मन में अपने भाई को लेकर जो एक लापरवाह, आलसी और गैरजिम्मेदार वाली सोच थी, उसे बदल दिया। इसलिए नहीं कि उसने मुझे स्कूटी दी बल्कि इसलिए कि उसने मुझे अहमियत दी।

 

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